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Tuesday, September 21, 2010

ख्वाब और खुदा...

दिन भर ख्वाब बुनता हूं
रात भर जागता रहता हूं

मंजिलें दौड़ती रहती हैं
मैं भी भागता रहता हूं

न जाने कब मिले मौका
अब भी ताकता रहता हूं

फस्ले ईमां बोई थी मैंने
दुख ही काटता रहता हूं

खुदा अब खुद ही चले आना
मैं खिड़की से झांकता रहता हूं