दिन भर ख्वाब बुनता हूं
रात भर जागता रहता हूं
मंजिलें दौड़ती रहती हैं
मैं भी भागता रहता हूं
न जाने कब मिले मौका
अब भी ताकता रहता हूं
फस्ले ईमां बोई थी मैंने
दुख ही काटता रहता हूं
खुदा अब खुद ही चले आना
मैं खिड़की से झांकता रहता हूं
बहुत बड़ी दुनिया में छोटे-छोटे पलों को जीने की ख्वाहिश और जिंदा रहने की जंग में अंतहीन दौड़ का हिस्सा हूं और डरता हूं गिरने से क्योंकि सबसे कठिन है जैसा अच्छा लगता है वैसा जीना... खोजता हूं अपने जैसे दीवानों को जो रोज भूलते हैं जरूरतों का प्रेम और सीखते हैं कैसे बिना मतलब किसी को अपनी रूह की गहराइयों में महसूस किया जा सकता है... जहां न रिश्ता हो न नाता न जरूरतें न मजबूरियां। मौजूद हो तो केवल यह अहसास कि कोई हमारा हो या न हो हम तो किसी के हैं।