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Thursday, January 21, 2010

राहुल रंग भरो कैनवास तुम्हारे सामने है




राहुल गांधी को परिस्थितियों, तकदीर और उनकी मेहनत ने ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है कि वे और उनकी ब्रिगेड देश को नई दिशा की ओर ले जा सकती है और अगर सत्ता सुंदरी ने मोह लिया तो फिर वही होगा जो पिछले कई सालों से सियासत में जारी है.... पिछली पोस्ट में मैने कहा था कि देश की सबसे बड़ी समस्या है अनुपयोगी जनसंख्या जो देश को दावानल की तरह लील रही है। मेरा अभिप्राय अनुपयोगी से क्या है इसे स्पष्ट करने में जगह और जोर दोनों जरूरी हैं. इसलिए इस क्रम की पहली कड़ी के रूप में जान लिजिए कि केवल शैक्षिक लिहाज से देश किस दिशा में जा रहा है। इस काम में मैने लफ्फाजी की बजाए संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को आधार बनाया है। रिपोर्ट के चुनिंदा अंश पेश हैं। यह आंकड़े और इससे जुड़े तथ्य देश को कैसे प्रभावित कर रहे हैं और क्या संभावनाएं हैं यह सभी कुछ आगे के अंकों में आपको पढऩे को मिलेगा।




भारत में अभी भी बड़ी आबादी है निरक्षर : यूनेस्को



शिक्षा के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में भारत में अभी भी बड़ी आबादी निरक्षर है। 'दी एजुकेशन फोर आल : ग्लोबल मोनिटरिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में 79 करोड़ 90 लाख निरक्षर वयस्कों में से भारत में इनकी संख्या सर्वाधिक है। यूनेस्को की रिपोर्ट कहती है कि जिन सात करोड़ 20 लाख बच्चों को प्राथमिक स्कूल में और जिन सात करोड़ दस लाख किशोरों को माध्यमिक स्कूलों में होना चाहिए था वे वहां नहीं हैं और यदि यही चलन जारी रहा तो वर्ष 2015 तक पांच करोड़ 60 लाख बच्चे प्राथमिक स्कूलों से बाहर होंगे।
यूनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1985 से 1994 के बीच देश में करीब आधी वयस्क आबादी निरक्षर थी। चूंकि वयस्क आबादी में 45 फीसदी का इजाफा हुआ है, इसलिए अब यह संख्या दो तिहाई हो गई है।
रिपोर्ट में लैंगिक असमानता पर भी रोशनी डाली गई है जहां 28 विकासशील देशों में स्कूलों में दस लड़कों के पीछे नौ या उससे कम लड़कियां हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल निरक्षर आबादी में दो तिहाई संख्या महिलाओं की है।
शिक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की इकाई की कार्यकारी निदेशक बोकोवा ने कल संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि कम शब्दों में कहें तो यह एक भ्रमित पीढ़ी को पैदा करेगा जो समाज के लिए भारी क्षति है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम आय वाले देशों में शिक्षा की गुणवत्ता बेहद खराब है और दक्षिण एशिया में जाति प्रथा शिक्षा में बाधा पहुंचा रही है। ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के मात्र 28 फीसदी बच्चे दो अंकों की जमा घटा कर सकते हैं और तीन में से केवल एक बच्चा घड़ी में देखकर समय बचा सकता है। रिपोर्ट कहती है कि भारत के ग्रामीण इलाकों में वोकेशनल कार्यक्रमों तक केवल तीन फीसदी युवकों की पहुंच है और इस बात के बहुत कम संकेत मिलते हैं कि इससे युवकों को रोजगार पाने में किसी प्रकार का लाभ हो रहा है।
इस पूरे सिलसिले में सबसे महत्वपूर्ण पहलू जो उभरे हैं वह हैं, युवा, बच्चे, लैंगिक आधार पर शिक्षा में खाई और जाति व्यवस्था। इन विषयों विचार करें तो लगेगा अभी तो काम शुरू भी नहीं हुआ है।

Wednesday, January 20, 2010

राहुल रोशनी न बुझे, अगर जलाएं हैं चराग उम्मीदों के...

राहुल गांधी मध्यप्रदेश आए, छात्रों से मिले, राजनीति में आने का न्योता दिया, साफगोई से कड़वे आरोपों को स्वीकार किया... बहुत बरसों बाद राजनीति की गहरी गंदली काई छंटती सी महसूस हुई। लेकिन बधाई पाने के लिए अभी इंतजार करें। बहुत सवाल बाकी हैं नियती, नीति और नियत का आइना अभी धुंधला है, अगर ये साफ हो कर सच बोलने लगे तो बात बनेगी।
पता नहीं राहुल ब्रिगेड ने इस पर मंथन किया है या नहीं कि लाल बहादुर शास्त्री के बाद वाले राजनीतिक परिदृश्य में नेताओं की स्वीकार्यता क्यों कम होती चली गई और लोग (खासकर अच्छे लोग) पहल करने, सामने आने और साथ देने तक में कतराने लगे हैं, नई पीढ़ी इस घुट्टी के साथ टारगेट हिट करने में जुटी है कि जहां से जैसे भी जो भी लाभ मिले ले लो और आगे बढ़ो, देश और समाज को रिटर्न देने की चिंता गई तेल लेने... क्योंकि इसके नाम पर खून चूसने वाला सिस्टम और राजनीति की रोटी सेंकने वालों की दुकाने कदम-कदम पर सजी हैं। देश के शीर्ष राजनीतिक प्रतिनिधियों का मेकअप स्टिंग आपरेशनों से लेकर संसद के गलियारों में बेलगाम बयानों और कोर्ट की कार्रवाइयों तक में लगातार उतरता जा रहा है और जो बचा-खुचा नजर आ रहा है, लगता नहीं है कि कोई उसे प्रेम करने की हिम्मत करेगा। हां अपनी जरूरतों को निकालने के लिए फालोअर मिल जाएं या दीवाने जुट जाएं ये बात जुदा है।
इस सूरते हाल में राहुल अगर घर (संगठन) संवारने की राह पर निकलें हैं तो अच्छा है क्योंकि नीति और नियत पाकीजा हुए तो फिर उम्मीदों के चिरागों की रोशनी कहां तक पहुंचेगी यह दुनिया बताएगी। राहुल मध्यप्रदेश प्रवास में संगठन के आंतरिक लोकतंत्र और युवा पीढ़ी को कांग्रेस से जोडऩे पर फोकस नजर आए, लेकिन सवाल ये है कि जिस दिशा में जिस अंदाज में राहुल गांधी आगे बढ़ रहे हैं वह कैसे और कितने फल देगा और उसका लाभ वितरण कैसे होगा। दूसरा पहलू यह है कि क्या यह सिर्फ अगले चुनाव के लिए सेना जोडऩा और उसे दुरुस्त और चाक-चौबंद करना है या नियत में इससे आगे का भी कुछ और ऐजेंडा छिपा है। अगर है तो अच्छा है वरना समझ लो कि यह मौका है जैसे राजीव गांधी ने देश को तकनीक, सूचना-प्रोद्योगिकी क्रांति का स्वाद चखाया था, वैसे ही यह देश अपनी सबसे दुखती रग अनुपयोगी जनसंख्या को सबसे मजबूत पक्ष के रूप में ढाल सकता है। जरूरत है केवल दृढ़ संकल्प वाले सच्चे लीडर की, उसे साथी तो मिल ही जाएंगे।
बहुत संक्षेप में अपनी बात कहने की कोशिश की है, इस मैसेज को कवर पेज की तरह देखें तो ज्यादा अच्छा होगा, अगर कोई सुपात्र चाहेगा तो इसके डिटेल बताने वाले इंडेक्स भी इसी पते पर प्रकाशित किए जाएंगे और अगर पसंद आने पर यह बात आगे बढ़ी तो आंकड़ों के साथ इस विषय पर क्रमवार बहुत सारे पेज इसे पूरी मेग्जीन की शक्ल दे देंगे।