देश में मैनस्ट्रीम मीडिया मर रहा है... क्या अखबार, क्या न्यूज चैनल सब अस्ताचलगामी हैं... सामांतर मीडिया और सोशल मीडिया कभी विश्वसनीय रहे ही नहीं... इन दिनों मीडिया का मूल रूप से ब्रेशवाश टूल की तरह इस्तेमाल हो रहा है । जिसे कारपोरेट और पालिटिकल पावर का गठजोड़ गवर्न कर रहा है। सूचना और समाचार विश्लेषण का माध्यम बनने वाला मीडिया मास कम्युनिकेशन की ताकत की बदलौत पालिटिकल माइंड मेकअप, ब्रेनवाश के साथ तथ्यों पर परदा डालते हुए नफरत-अलगाव और भ्रम फैलाने का हथियार बना हुआ है। इसका सबसे बड़ा शिकार दो कम्युनिटी हुई हैं, जिसमें पहले नंबर पर मुस्लिम और दूसरे पर दलित-आदिवासी हैं। दरअसल इस वर्ग का मैनस्ट्रीम मीडिया में प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है, शायद इसी वजह से मुझ तक सालों से ये बात मदद के लिए आती रही है कि हमारा ( मुस्लिम-दलित बहुजन) का अपना सशक्त मीडिया होना चाहिए।
इस छटपटाहट में कितना दम है केवल इस बात से समझा जा सकता है कि देश भर में नफरती भाषणों की घटनाओं पर अंकुश लगाने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने टीवी समाचार सामग्री पर नियामकीय नियंत्रण की कमी पर अफसोस जताते हुए नफरत फैलाने वाले भाषण को 'बड़ा खतरा' बताया है। साथ ही कहा है प्रिंट मीडिया के विपरीत, समाचार चैनलों के लिए कोई भारतीय प्रेस परिषद नहीं है। कहा,मीडिया के लोगों को समझना चाहिए कि जिसके खिलाफ अभी भी जांच चल रही है और उसे बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। हर किसी की गरिमा होती है।
अदालती चिंता के बीच मेरा मानना है अगर हालात ऐेसे ही रहे तो आने वाला वक्त कम्युनिटी मीडिया का होगा। उसका आकार और व्यहवार कैसा होगा ये भी वक्त और हालात तय करेंगे...
देवेश कल्याणी
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