Saturday, August 29, 2009

सरमद याद आया


अमेरिका के लास एंजिलस में गो टापलेस आंदोलन के चलते जब महिलाएं अनावृत स्तनों के साथ सड़कों पर आई एक बार फिर ये सवाल दुनियाभर में पहुंच गया है कि जब पुरुष टापलेस हो सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं। आखिर प्रकृति से एकाकार होने का हक उन्हे क्यों न मिले... इन्हें दो मनुष्यों के बीच लिंग विविधता की दीवार और स्त्री पर अधिकार की जंजीर क्यों बनाया जाए। हम में से शायद ही कोई स्त्री होगी जिसने सीना अनावृत न कर पाने की बंदिशों के कारण कोई पीड़ा न उठाई हो। चाहे वह अपने नवजात को स्तनपान करने के वक्त की हो या तपती गरमी में बंद कमरे में पसीने से भीगने की... यौन भेद की इन दीवारों के औचित्य और गैरजरूरी होने पर काफी बहस की गुंजाइश है, मगर यह तय है कि सूरत तो बदलना चाहिए। इसी सिलिसले में दिल्ली के मस्तमौला फकीर सरमद का अक्स जहन में उभर आया है। उसे बादशाह औरंगजेब ने इसिलए मरवा दिया था, क्योकि वह आधा कलमा पढ़ता था और न तो किसी को पूज्य मानता था न ही कपड़ों की जरूरत महसूस करता था। कहते हैं जब उससे पूछा गया कि नंगा क्यों है तो उसने कहा मालिक (परमात्मा) ने गुनाहगारों को गुनाह छिपाने के लिए ये कपड़े और दूसरे परदे दिए हैं, मेरे और परमात्मा के बीच अब कोई परदा नहीं क्योंकि मैं सारे गुनाहों से मुक्त हूं। इसलिए कपड़ों की जरूरत क्या है। बस यही बात उसकी मौत का कारण बनी। स्त्रीयों के अनावृत स्तन को पापमुक्त मानने-देखने की ताकत व समझ दुनिया के कौने-कौने तक कब तक पहुंचेगी नहीं जानता, लेकिन यह तय है कि प्रकृति कभी फैशन बन कर तो कभी आंदोलन बन कर और कभी पोर्न इंडस्ट्री बन कर पुरुषवाद और महिलाओं को एकाधिकार वाली यौन दासियों में तब्दील करने वाली दीवारों में सुराख बनाती रहेगी।

Saturday, February 14, 2009

पब, पिंक चड्ढी और इतनी हाट ऐश- हर हाथ में दुखती रग


श्रीराम सेना ने पब में लडकियों को पीटा (आदमियों को क्यों छोड दिया?), निशा सूसन एंड पार्टी ने पिंक चड्ढी की धूम मचाई, शायद इसके अलावा विरोध का कोई जरिया नजर ही नहीं आया होगा, आखिर प्रगतिशीलता भी तो कोई चीज है। इस क्रम की बचीखुची कसर ऐन वैलेंटाइन डे पर बर्लिन में पिंक पैंथर पार्टी में एश्वर्या की हार्टशेप सेक्सी टापलेस ड्रेस ने पूरी कर दी। इससे माडर्न, एडवांस और ग्लोबल सोच वाली यूथ (बुढाती उमर में खुद को जवां दिखाने की अंतिम कोशिश एक्सपोजर पर मजबूर) आइकन और ख्यात बच्चन घराने की बहू ( जिसमें कई लोग अपनी बहू की छवि ढूंढते हैं) भला और कहां होगी... पर क्या करेगा काजी जब मियां बीबी राजी
असल में सब के सब अपने आप को मार्केट करने के लिए कंसेप्ट बेच रहे हैं, निशाना है अलग-अलग क्लास और कैटेगिरी के लोग। कई बार तो लोगों को ये चाले नजर ही नहीं आती और कुछ को आती भी है तो वे बहती गंगा में हाथ के साथ नहा-धो लेने में विश्वास करते हैं। चाहे श्री राम सेना का मुतालिक हो या सूसन सबको चाहिए इमोशनल सपोर्ट क्रिएट करने वाला ऐसा फंडा जो बिना एड और एक्सपेंडेचर के उन्हें ब्रांड बना दे, जिससे ये वक्ती नायक बाद में अपनी दुकानें चलाते रहें। मुतालिक ने पहले पब में हंगामा मचाया और बाद में वेलेंटाइन डे प्रोग्राम घोषित कर दिया, बस फिर क्या था, सज गई दुकान... गृहमंत्री का बयान और विरोध शबाब पर आ गया कल जिसे कोई जानता तक नहीं था नेशनल फीगर हो गया... अकल के अजीर्ण वाले बयानवीर ब्लागरों से ले कर फुरसती धंधेबाजों को काम मिल गया... कुछ कमअकल लोग बेकार में ही अब्दुल्ला दीवाना बन कर लगे नाचने....
खैर उनका तो काम हो गया अब चैप्टर नंबर दो शुरू होना था विरोध का... इसके लिए कुछ तय दुकानों की मोनोपाली है उनके बयान-बयान और स्ट्रेटेजी घोषित हो ही रही थी कि निशा सूसन के दिमाग के न्यूज एनालिसिस सेंसे ने सेक्स भडकाऊ, दिल धडकाऊ और बत्ती बुझाऊ टाइप का आइडिया उगल मारा और पुरानी दुकानों का दिवाला पिटने के साथ ही शुरू हो गया पिंक चड्ढी कैंपेन... अब यहां भी निठल्ले ज्ञानियों को कर्तव्य विद् लाइम लाइट एक्सपोजर का बोध हो गया और सौ पचास रुपए की चड्ढी की कीमत पर फेमेनिस्टि और एडवांस होने की डिग्री बंटने लगी। दुकान तो ऐसे सजाई गई गोया चड्ढी नहीं संपूर्ण स्त्रीत्व को पैक करके मुंह पर मार दिया गया है। चड्ढी भेजने के आइडिए के मायने सूसन बेहतर जाने पर किसी भी आम लडकी या औरत से पूछ कर देखें कि उसकी चड्ढी के मायने क्या हैं चाहे वह दुनिया के किसी भी हिस्से में रहती हो। उधर चड्ढी के बाजार में सेंध लगाने के लिए लगे हाथ कुछ भाइयों ने कंडोम का तडका लगाया, थोडी बहुत हलचल भी मची, लेकिन तब तक हमें क्या करना की खुमारी खेल बिगड ही रही थी कि मारल पुलिसिंग का महोत्सव वैलेंटाइन डे आ गया... देश भर में महान समाज सेवक निकल पडे लोगों को मोहब्बत और नैतिकता का पाठ पढाने...
इस मौके का फायदा उठाने की सबसे अलग कोशिश की ऐश्वर्या राय ने... हाथ से नक्षत्र समेत लगातार निकलते एड, पिटती फिल्में, घटती टीआरपी और जलवे के बुझते दीपक के बीच पिंक पैंथर की उम्मीद पर आलोचकों ने ढीला रिस्पांस और थकी फिल्म की मुहर लगा दी। तो... अब क्या करें, कैसे बताए कि रूप का जादू वही है जो मिस वर्ल्ड और उन दिनों के न्यूड पिक सेशन में था। सो अब तक के सबसे कम ( सार्वजनिक) कपडों में बर्लिन में फोटो सेशन करती नजर आईं.. क्या पता कल वे ही इसे इश्यू बनवा दें और पिंक पैंथर बगैर प्रमोशन के इतना नाम तो कमा ही जाए कि घोर पिटी के टैग और घाटे से बाहर आ जाए, ताकि आगे गुंजाइश बनी रहे खैर... देखते चलिए वक्त के इम्तिहान अभी और बाकी हैं। दुकानें बहुत हैं बच के चलें... समझदारी ओवरफ्लो हो तो अपनी भी सजा लें... टेपे हर कैटेगिरी में मिलते हैं, चाहिए बस एक ढंग का दुकानदार... जय हो... जय हो