Sunday, September 28, 2008

गुनाहगार हैं रहने दो मुंह िछपाए हुए

कहने की बात है,िसतारों से हम िमले... हर बार जो देखा कोई चील आसमांं पर िदन का तारा बनी नजर आई। सूरज बादलों की ओट में एेसे िछपा थे जैसे झगड़े के बाद बीच वाले बीवी के पहलू और दरवाजे की ओट में रहते हैं। िदल्ली में संतोष के बाद तािहर ने भी दम तोड़ िदया । िदल्ली हो या मालेगांव मरने वाले मासूमों की लाशें हमेशा की तरह सवाल करती रहीं और हमारा िसस्टम बेजुबान गाय की तरह भोला और लोग बेहया िहजड़ों की तरह नजर आने लगे। लानत है। खुदा को लगा िक एेसे लोगोंं िहसाब लेना चािहए... उन्होंने कयामत का इंतजार िकए बगैर दुिनयाए फानी का रुख िकया तो पाया िक मुजिरमों की कतारों में अवाम के लोगों के साथ नेताओं और अफसरों की लंबी लाइनें लगी थीं और बम फैंकने वाले असल लोग िहसाब की बारी के इंतजार में चैन की नींद िनकाल रहे थे।

2 comments:

अभिषेक मिश्र said...

Acha laga post aapka. Blog par aapki belag vichar milte rahane ki asha hai.

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुंदर आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है मेरे चिठ्ठे पर पधार कर कविता का आनंद लें