बहुत बड़ी दुनिया में छोटे-छोटे पलों को जीने की ख्वाहिश और जिंदा रहने की जंग में अंतहीन दौड़ का हिस्सा हूं और डरता हूं गिरने से क्योंकि सबसे कठिन है जैसा अच्छा लगता है वैसा जीना... खोजता हूं अपने जैसे दीवानों को जो रोज भूलते हैं जरूरतों का प्रेम और सीखते हैं कैसे बिना मतलब किसी को अपनी रूह की गहराइयों में महसूस किया जा सकता है... जहां न रिश्ता हो न नाता न जरूरतें न मजबूरियां। मौजूद हो तो केवल यह अहसास कि कोई हमारा हो या न हो हम तो किसी के हैं।
Tuesday, September 7, 2010
तो कौन जिम्मेदार होता....
भोपाल में सोमवार को भाजपाई आयोजन ने ट्रैफिक व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया और शहर भर परेशान ... ऐसे में सवाल यह है कि जब तय था कि इतने लोग और गाड़ियां आएंगी तो पुलिस के बड़े अधिकारियों और भाजपा के काडर लीडरों ने कोई व्यवस्था क्यों नहीं की... क्या इसके लिए दोषी नहीं कहना चाहिए... इस भीड़भाड़ में बाबरी फैसले और आतंकी टारगेट ...के चलते संवेदनशील भोपाल में कुछ हो जाता तो कौन जिम्मेदार होता....
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