Monday, November 24, 2008

साध्वी के हौसले को सलाम... कहां मर गए मानवाधिकार वाले?

साध्वी के सम्मान के मदॆन की खबरें लगातार आ रही थीं, लेकिन सिवाए मौकापरस्त नेताओं के किसी की चूं तक सुनाई नहीं दे रही थी। कुछ एक ब्लागरों ने फ्रंट संभाला तो कुछ संत-संन्यासियों ने भी साहस का परिचय देने की कोशिश की, लेकिन चार राज्यों के चुनाव और राजनीति के नक्कारखाने में कोई आवाज पुरजोर नहीं हो पाई। सोमवार को जब साध्वी का यह आरोप सामने आया कि एटीएस ने उनके कपड़े उतारने की धमकी दी और गालियों से बात कर और बेल्ट-जूतों से मारा तो लगा कि एटीएस की बेकरारी बेसबब नहीं है। आखिर नतीजों तक पहुंचने और मकोका लगाने की इस जल्दी का कोई तो राज होगा। दरअसल मकोका लगने के बाद जो समय बचेगा वह लोकसभा चुनाव के पास खत्म होगा, यानी दो चुनाव एक दांव... फिर भी साध्वी ने जो धैयॆ दिखाया है वह काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि कहां मर गए वो मानवाधिकार के पुरोधा जो तथाकथित प्रगतिशीलता के नाम पर चाहे जिस मुद्दे पर स्थायी भाव से टिप्पणी और प्रदशॆन करते नजर आते रहे, शायद कम्युनिस्टों की आवाज बंद हो गई है और कांग्रेसीजनों को इसमें किसी प्रकार की बुराई नजर नही आ रही होगी। भाजपाई इसे पोलेटिकल मुद्दे की तरह सावधानी से संभाल कर चल रहे हैं कि मौका पड़े तो छुटकारा पाया जा सके, लेकिन जेल संहिता, मानवाघिकार, धमॆ, कानून और नैतिककी की बात करने वाले किस कोने में जा छिपे हैं, लग तो यूं रहा है जैसे उनके आकाओं ने गायब होने का फरमान सुना दिया हो।या सबके सब एक साथ मर गए हों ॥ खैर कितनी देर और दिन तक मरे हुए जमीर के लोगों का मुरदा देश सोता रहेगा... सारे लोग जागे न जागें कुछ लोग भी जाग गए तो.. यकीन जानना न्याय होगा... साध्वी के साथ भी और मालेगांव धमाके के पीडितों के साथ भी..लेकिन अगर कोई नहीं बच पाएगा तो वह होंगे इस कांड के नाम पर फिजाओं में जहर घोलने वाले.. चाहे फिर वह अफसर हों या परदे के पीछे खेल दिखाने वाले नेता... नतीजे बेशक जो चाहे हों, लेकिन आदमियत तभी बची रहेगी जब इतने गंभीर आरोपों वाला कांड मीडिया की टीआरपी और रीडरशिप का फंडा न बने और न ही नौकरशाही और नेतृत्व उसका मनचाहा इस्तेमाल कर सके।

1 comment:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

कौन सुनेगा और कौन पढेगा??????? क्योंकि मामला एक हिन्दू का है,जनाब...................