श्रीराम सेना ने पब में लडकियों को पीटा (आदमियों को क्यों छोड दिया?), निशा सूसन एंड पार्टी ने पिंक चड्ढी की धूम मचाई, शायद इसके अलावा विरोध का कोई जरिया नजर ही नहीं आया होगा, आखिर प्रगतिशीलता भी तो कोई चीज है। इस क्रम की बचीखुची कसर ऐन वैलेंटाइन डे पर बर्लिन में पिंक पैंथर पार्टी में एश्वर्या की हार्टशेप सेक्सी टापलेस ड्रेस ने पूरी कर दी। इससे माडर्न, एडवांस और ग्लोबल सोच वाली यूथ (बुढाती उमर में खुद को जवां दिखाने की अंतिम कोशिश एक्सपोजर पर मजबूर) आइकन और ख्यात बच्चन घराने की बहू ( जिसमें कई लोग अपनी बहू की छवि ढूंढते हैं) भला और कहां होगी... पर क्या करेगा काजी जब मियां बीबी राजी
असल में सब के सब अपने आप को मार्केट करने के लिए कंसेप्ट बेच रहे हैं, निशाना है अलग-अलग क्लास और कैटेगिरी के लोग। कई बार तो लोगों को ये चाले नजर ही नहीं आती और कुछ को आती भी है तो वे बहती गंगा में हाथ के साथ नहा-धो लेने में विश्वास करते हैं। चाहे श्री राम सेना का मुतालिक हो या सूसन सबको चाहिए इमोशनल सपोर्ट क्रिएट करने वाला ऐसा फंडा जो बिना एड और एक्सपेंडेचर के उन्हें ब्रांड बना दे, जिससे ये वक्ती नायक बाद में अपनी दुकानें चलाते रहें। मुतालिक ने पहले पब में हंगामा मचाया और बाद में वेलेंटाइन डे प्रोग्राम घोषित कर दिया, बस फिर क्या था, सज गई दुकान... गृहमंत्री का बयान और विरोध शबाब पर आ गया कल जिसे कोई जानता तक नहीं था नेशनल फीगर हो गया... अकल के अजीर्ण वाले बयानवीर ब्लागरों से ले कर फुरसती धंधेबाजों को काम मिल गया... कुछ कमअकल लोग बेकार में ही अब्दुल्ला दीवाना बन कर लगे नाचने....
खैर उनका तो काम हो गया अब चैप्टर नंबर दो शुरू होना था विरोध का... इसके लिए कुछ तय दुकानों की मोनोपाली है उनके बयान-बयान और स्ट्रेटेजी घोषित हो ही रही थी कि निशा सूसन के दिमाग के न्यूज एनालिसिस सेंसे ने सेक्स भडकाऊ, दिल धडकाऊ और बत्ती बुझाऊ टाइप का आइडिया उगल मारा और पुरानी दुकानों का दिवाला पिटने के साथ ही शुरू हो गया पिंक चड्ढी कैंपेन... अब यहां भी निठल्ले ज्ञानियों को कर्तव्य विद् लाइम लाइट एक्सपोजर का बोध हो गया और सौ पचास रुपए की चड्ढी की कीमत पर फेमेनिस्टि और एडवांस होने की डिग्री बंटने लगी। दुकान तो ऐसे सजाई गई गोया चड्ढी नहीं संपूर्ण स्त्रीत्व को पैक करके मुंह पर मार दिया गया है। चड्ढी भेजने के आइडिए के मायने सूसन बेहतर जाने पर किसी भी आम लडकी या औरत से पूछ कर देखें कि उसकी चड्ढी के मायने क्या हैं चाहे वह दुनिया के किसी भी हिस्से में रहती हो। उधर चड्ढी के बाजार में सेंध लगाने के लिए लगे हाथ कुछ भाइयों ने कंडोम का तडका लगाया, थोडी बहुत हलचल भी मची, लेकिन तब तक हमें क्या करना की खुमारी खेल बिगड ही रही थी कि मारल पुलिसिंग का महोत्सव वैलेंटाइन डे आ गया... देश भर में महान समाज सेवक निकल पडे लोगों को मोहब्बत और नैतिकता का पाठ पढाने...
इस मौके का फायदा उठाने की सबसे अलग कोशिश की ऐश्वर्या राय ने... हाथ से नक्षत्र समेत लगातार निकलते एड, पिटती फिल्में, घटती टीआरपी और जलवे के बुझते दीपक के बीच पिंक पैंथर की उम्मीद पर आलोचकों ने ढीला रिस्पांस और थकी फिल्म की मुहर लगा दी। तो... अब क्या करें, कैसे बताए कि रूप का जादू वही है जो मिस वर्ल्ड और उन दिनों के न्यूड पिक सेशन में था। सो अब तक के सबसे कम ( सार्वजनिक) कपडों में बर्लिन में फोटो सेशन करती नजर आईं.. क्या पता कल वे ही इसे इश्यू बनवा दें और पिंक पैंथर बगैर प्रमोशन के इतना नाम तो कमा ही जाए कि घोर पिटी के टैग और घाटे से बाहर आ जाए, ताकि आगे गुंजाइश बनी रहे खैर... देखते चलिए वक्त के इम्तिहान अभी और बाकी हैं। दुकानें बहुत हैं बच के चलें... समझदारी ओवरफ्लो हो तो अपनी भी सजा लें... टेपे हर कैटेगिरी में मिलते हैं, चाहिए बस एक ढंग का दुकानदार... जय हो... जय हो
असल में सब के सब अपने आप को मार्केट करने के लिए कंसेप्ट बेच रहे हैं, निशाना है अलग-अलग क्लास और कैटेगिरी के लोग। कई बार तो लोगों को ये चाले नजर ही नहीं आती और कुछ को आती भी है तो वे बहती गंगा में हाथ के साथ नहा-धो लेने में विश्वास करते हैं। चाहे श्री राम सेना का मुतालिक हो या सूसन सबको चाहिए इमोशनल सपोर्ट क्रिएट करने वाला ऐसा फंडा जो बिना एड और एक्सपेंडेचर के उन्हें ब्रांड बना दे, जिससे ये वक्ती नायक बाद में अपनी दुकानें चलाते रहें। मुतालिक ने पहले पब में हंगामा मचाया और बाद में वेलेंटाइन डे प्रोग्राम घोषित कर दिया, बस फिर क्या था, सज गई दुकान... गृहमंत्री का बयान और विरोध शबाब पर आ गया कल जिसे कोई जानता तक नहीं था नेशनल फीगर हो गया... अकल के अजीर्ण वाले बयानवीर ब्लागरों से ले कर फुरसती धंधेबाजों को काम मिल गया... कुछ कमअकल लोग बेकार में ही अब्दुल्ला दीवाना बन कर लगे नाचने....
खैर उनका तो काम हो गया अब चैप्टर नंबर दो शुरू होना था विरोध का... इसके लिए कुछ तय दुकानों की मोनोपाली है उनके बयान-बयान और स्ट्रेटेजी घोषित हो ही रही थी कि निशा सूसन के दिमाग के न्यूज एनालिसिस सेंसे ने सेक्स भडकाऊ, दिल धडकाऊ और बत्ती बुझाऊ टाइप का आइडिया उगल मारा और पुरानी दुकानों का दिवाला पिटने के साथ ही शुरू हो गया पिंक चड्ढी कैंपेन... अब यहां भी निठल्ले ज्ञानियों को कर्तव्य विद् लाइम लाइट एक्सपोजर का बोध हो गया और सौ पचास रुपए की चड्ढी की कीमत पर फेमेनिस्टि और एडवांस होने की डिग्री बंटने लगी। दुकान तो ऐसे सजाई गई गोया चड्ढी नहीं संपूर्ण स्त्रीत्व को पैक करके मुंह पर मार दिया गया है। चड्ढी भेजने के आइडिए के मायने सूसन बेहतर जाने पर किसी भी आम लडकी या औरत से पूछ कर देखें कि उसकी चड्ढी के मायने क्या हैं चाहे वह दुनिया के किसी भी हिस्से में रहती हो। उधर चड्ढी के बाजार में सेंध लगाने के लिए लगे हाथ कुछ भाइयों ने कंडोम का तडका लगाया, थोडी बहुत हलचल भी मची, लेकिन तब तक हमें क्या करना की खुमारी खेल बिगड ही रही थी कि मारल पुलिसिंग का महोत्सव वैलेंटाइन डे आ गया... देश भर में महान समाज सेवक निकल पडे लोगों को मोहब्बत और नैतिकता का पाठ पढाने...
इस मौके का फायदा उठाने की सबसे अलग कोशिश की ऐश्वर्या राय ने... हाथ से नक्षत्र समेत लगातार निकलते एड, पिटती फिल्में, घटती टीआरपी और जलवे के बुझते दीपक के बीच पिंक पैंथर की उम्मीद पर आलोचकों ने ढीला रिस्पांस और थकी फिल्म की मुहर लगा दी। तो... अब क्या करें, कैसे बताए कि रूप का जादू वही है जो मिस वर्ल्ड और उन दिनों के न्यूड पिक सेशन में था। सो अब तक के सबसे कम ( सार्वजनिक) कपडों में बर्लिन में फोटो सेशन करती नजर आईं.. क्या पता कल वे ही इसे इश्यू बनवा दें और पिंक पैंथर बगैर प्रमोशन के इतना नाम तो कमा ही जाए कि घोर पिटी के टैग और घाटे से बाहर आ जाए, ताकि आगे गुंजाइश बनी रहे खैर... देखते चलिए वक्त के इम्तिहान अभी और बाकी हैं। दुकानें बहुत हैं बच के चलें... समझदारी ओवरफ्लो हो तो अपनी भी सजा लें... टेपे हर कैटेगिरी में मिलते हैं, चाहिए बस एक ढंग का दुकानदार... जय हो... जय हो
1 comment:
bahut khoob,
ash ki tasweer to lagta hai aapko bhi pasand to aayii hai.
my feelings on valentine day:-
Saturday, 14 February, 2009
वेलेंटाइन डे
तितलियों के मौसम में चद्दियां उड़ाई है,
कौन आज गर्वित है,किसको शर्म आयी है?
घात इतनी 'अन्दर'तक किसने ये लगायी है?
संस्कारो की अपने धज्जियां उड़ाई है।
रस्म ये नही अपनी,फ़िर भी दिल तो जुड़ते है,
रिश्ता तौड़ने वालों कैसी ये लड़ाई है!
दिल-जलो की बातों पर किस से दुशमनी कर ली!
ये बहुएं कुल की है, कल के ये जमाई है।
चद्दियां जो आई है,ये संदेश है उसमे,
लाज रखना बहना की, आप उनके भाई है।
प्यार के हो दिन सारे, ये मैरी तमन्ना है,
वर्ष के हर एक दिन की आपको बधाई है।
-मन्सूर अली हाशमी
http://mansooralihashmi.blogspot.com
प्रस्तुतकर्ता Mansoor Ali पर 9:31 AM इस संदेश के लिए लिंक
7 टिप्पणियाँ
Friday, 13 February, 2009
आश्वासन [दिलासा]
'बात झूठी है'; ये सच्चाई तो है,
बोल पाना 'यहीं' अच्छाई तो है।
क़द न बढ़ पाया; कि अवसर न मिले,
मुझसे लम्बी मैरी परछाई तो है।
दौरे मन्दी में थमी है रफ़्तार,
एक बढ़ती हुई महंगाई तो है।
कौन है;क्या है? कुछ पता न चला!
हम किसी चीज़ की परछाई तो है।
ख़ुद-फ़रेबों* की नही भीड़ तो क्या,
'मौसमे प्यार'* में तन्हाई तो है।
*ख़ुद फ़रेब = स्वय को धोका देने वाला, * मौसमे-प्यार = valentine day
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