Wednesday, January 20, 2010

राहुल रोशनी न बुझे, अगर जलाएं हैं चराग उम्मीदों के...

राहुल गांधी मध्यप्रदेश आए, छात्रों से मिले, राजनीति में आने का न्योता दिया, साफगोई से कड़वे आरोपों को स्वीकार किया... बहुत बरसों बाद राजनीति की गहरी गंदली काई छंटती सी महसूस हुई। लेकिन बधाई पाने के लिए अभी इंतजार करें। बहुत सवाल बाकी हैं नियती, नीति और नियत का आइना अभी धुंधला है, अगर ये साफ हो कर सच बोलने लगे तो बात बनेगी।
पता नहीं राहुल ब्रिगेड ने इस पर मंथन किया है या नहीं कि लाल बहादुर शास्त्री के बाद वाले राजनीतिक परिदृश्य में नेताओं की स्वीकार्यता क्यों कम होती चली गई और लोग (खासकर अच्छे लोग) पहल करने, सामने आने और साथ देने तक में कतराने लगे हैं, नई पीढ़ी इस घुट्टी के साथ टारगेट हिट करने में जुटी है कि जहां से जैसे भी जो भी लाभ मिले ले लो और आगे बढ़ो, देश और समाज को रिटर्न देने की चिंता गई तेल लेने... क्योंकि इसके नाम पर खून चूसने वाला सिस्टम और राजनीति की रोटी सेंकने वालों की दुकाने कदम-कदम पर सजी हैं। देश के शीर्ष राजनीतिक प्रतिनिधियों का मेकअप स्टिंग आपरेशनों से लेकर संसद के गलियारों में बेलगाम बयानों और कोर्ट की कार्रवाइयों तक में लगातार उतरता जा रहा है और जो बचा-खुचा नजर आ रहा है, लगता नहीं है कि कोई उसे प्रेम करने की हिम्मत करेगा। हां अपनी जरूरतों को निकालने के लिए फालोअर मिल जाएं या दीवाने जुट जाएं ये बात जुदा है।
इस सूरते हाल में राहुल अगर घर (संगठन) संवारने की राह पर निकलें हैं तो अच्छा है क्योंकि नीति और नियत पाकीजा हुए तो फिर उम्मीदों के चिरागों की रोशनी कहां तक पहुंचेगी यह दुनिया बताएगी। राहुल मध्यप्रदेश प्रवास में संगठन के आंतरिक लोकतंत्र और युवा पीढ़ी को कांग्रेस से जोडऩे पर फोकस नजर आए, लेकिन सवाल ये है कि जिस दिशा में जिस अंदाज में राहुल गांधी आगे बढ़ रहे हैं वह कैसे और कितने फल देगा और उसका लाभ वितरण कैसे होगा। दूसरा पहलू यह है कि क्या यह सिर्फ अगले चुनाव के लिए सेना जोडऩा और उसे दुरुस्त और चाक-चौबंद करना है या नियत में इससे आगे का भी कुछ और ऐजेंडा छिपा है। अगर है तो अच्छा है वरना समझ लो कि यह मौका है जैसे राजीव गांधी ने देश को तकनीक, सूचना-प्रोद्योगिकी क्रांति का स्वाद चखाया था, वैसे ही यह देश अपनी सबसे दुखती रग अनुपयोगी जनसंख्या को सबसे मजबूत पक्ष के रूप में ढाल सकता है। जरूरत है केवल दृढ़ संकल्प वाले सच्चे लीडर की, उसे साथी तो मिल ही जाएंगे।
बहुत संक्षेप में अपनी बात कहने की कोशिश की है, इस मैसेज को कवर पेज की तरह देखें तो ज्यादा अच्छा होगा, अगर कोई सुपात्र चाहेगा तो इसके डिटेल बताने वाले इंडेक्स भी इसी पते पर प्रकाशित किए जाएंगे और अगर पसंद आने पर यह बात आगे बढ़ी तो आंकड़ों के साथ इस विषय पर क्रमवार बहुत सारे पेज इसे पूरी मेग्जीन की शक्ल दे देंगे।

4 comments:

संगीता पुरी said...

सहमत हूं आपसे !!

Udan Tashtari said...

डिटेलिंग तो जरुर करें.

अनुनाद सिंह said...

इस देश को वंशवाद के अभिशाप से मुक्ति कब मिलेगी? कब देश की आम जनता इस भोंदूपन्थ से छुटकारा पायेगी? एक आम आदमी का बेटा (देसी बेटा) कब देश का सिरमौर बनेगा?

Devesh said...

ब्लाग पर आने और टिप्पणी के लिए सभी का शुक्रिया। सहमति का हौसला, डिटेलिंग पर जोर के साथ अनुनाद जी का इंदौरी शब्द दिल को छू गया कि इस भोंदूपंथ से छुटकारा कब? खैर मुद्दे की बात पर जल्द ही क्रमवार तरीके से अपनी बातें रखूंगा कि देश को दावानल की तरह लील रही अनुपयोगी जनसंख्या क्या है और कैसे इस अग्नि को ऊर्जा में तब्दील किया जा सकता है। ताजा पोस्ट में कुछ आंकडे पेश हैं उम्मीद है आपको पसंद आएंगे।
देवेश कल्याणी