Sunday, October 12, 2008

पूंजीवाद अंत की ओर गरीबों को पैसा दो तो बचेगी जान


ग्लोबलाइजेशन में जो कुछ हुआ,वह न तो अप्रत्यािशत है और न ही अचानक। वल्डर् इकोनामी को कागज से डालरों से कंटर्ोल करने वाले सोच रहे थे पूंजीवाद को ग्लोबलाइजेशन का चोला पहना कर दुिनया को लूटते रहेंगे और िजस देश या आदमी में ये ताकत आ जाएगी िक वह मुकाबला कर सके उसे लूट का िहस्सेदार बना लेंगे और अपने ही लोगों से दूर कर देंगे, लेिकन एसा हो न सका... और अब ये हाल है िक अमेिरका के अस्सी फीसदी लोग अवसाद का िशकार हो गए है। सरकार भी उद्योगों को बचाने के िलए हर नागरिक को साठ लाख का कर्जदार बना कर 110 अरब डालर की सहायता बैिकंग और उद्योग जगत को दे चुकी है, लेकिन हालत है कि पतली होती जा रही है। एक दुनिया एक करंसी का सपना बिखर गया है, पूंजीवाद का अंत शुरू हो गया है,जालिम जमाने को संदेश मिल चुका है कि अगर गरीबों के हाथों के रुपए धन्ना सेठों की तिजौरियों में बंद किए तो बाजार उठ जाएगा और घर लुट जाएगा। देवेश कल्याणी

1 comment:

L.Goswami said...

aapse purn sahmat hun..par itna aasan bhi nahi punjiwaad ka khtm hona.