ये नेता न शहीद के घर जाने के काबिल हो न सदन बैठने के...
मुंबई में आतंकी हमले को अपने सीने पर झेल कर देश की आर्थिक राजधानी को चैन बख्शने वाले शहीदों की चिता की राख भी ठंडी नहीं पडी है और कि नेताओं के गंदे दिमाग में इस आग में अपनी रोटिंयां सेंकने के बेशर्म आइडिए बयानों की शक्ल में बाहर आने लगे हैं। मुंबई में शहीद हुए एनएसजी कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के घर जो कुछ हुआ वह इसकी बानगी भर है। सोमवार को केरल के खिसियाए मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंद ने सोमवार को एक निजी चैनल पर कहा मेजर संदीप के पिता को यह सोचना चाहिए था कि हम यहां पर सहानुभूति जताने आए हैं अगर उनके बेटे ने देश के लोगों की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान नहीं की होती तो उनके घर कोई कुत्ता भी नहीं आता। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शहीद उन्नीकृष्णन के घर पर सहानुभूति प्रदर्शित करने गये थे, लेकिन उन्नीकृष्णन के पिता ने क्रोध में उन्हें बाहर निकलो कुत्तो कहकर भगा दिया था। अच्युतानंदन की मूर्खताभरी चालकी इसी से नजर आती है कि अगर उन्हें या उनके मंत्रीमंडल को शहीद परिवार की इतनी सच्ची फिक्र थी तो वे तीन दिन तक क्या कर रहे थे, जबकि मेजर की अंत्येष्टि भी हो चुकी थी। हकीकत तो यह है कि जब मीडिया ने उनकी घरघुस्सु घटिया मानसिकता को उजागर किया और उन्हें पता चला कि शहीद के घर जा कर भी इमेज बिल्डिंग हो सकती है तो वह मना करने के बावजूद पिछले दरवाजे से घुसने में भी बाज नहीं आए... खैर हुआ वही जिसकी आशंका था बहादुर बेटे के बाप ने पूजा स्थल को कुत्तों से चैक कराने वाले मौकापरस्त को बता दिया कि उनकी औकात एक आम आदमी के लिए क्या है। जब सरेआम बेइज्जती हुई तो वे बदला लेने पर उतारू हो गए और उन्नीकृष्णन के लिए कहा कि मेजर उनके बेटे नहीं होते तो कोई कुत्ता भी उनके घर झांकने नहीं जाता। इसका एक मतलब तो यह है कि सामान्यजन कुत्ते हैं और दूसरा यह कि किसी सामान्य आदमी के घर जाने वाले कुत्ते हैं।
घटियापन के दूसरे महान धार्मिक चित्र हैं हिंदुवादी मुखौटाधारी भाजपा के सेक्युलर मास्क मुख्तार अब्बास नकवी। वो पाकिस्तान को गरिया कर अपनी पार्टी को लाभ पहुंचाने की इस अंदाज में करते हैं कि जैसे मुस्लिम हो कर पाक को नापाक बताने से देश और जनता पर बडा भारी अहसान कर रहे हों। इसी चक्कर में कश्मीर के प्रदर्शनों और मुंबई के प्रदर्शनों में तुलना करते वक्त वो बोल बैठे जो किसी को सहन नहीं हो सकता। आतंक के सामने नाकाम रहने और घुटने टेकने वाले नेताओं की खाल उधेडने वाले प्रदर्शन पर उन्होंने एक टीवी चैनल से कहा कि मुंबई में नेताओं के प्रति जो गुस्से की बात कही जा रही है वह लिपिस्टिक, पाउडर लगा कर, सूट पहन कर किया जा रहा दिखावा मात्र है। यह मुद्दा बदलने की कोशिश है। नकवी ने जनता को निशाना बनाते हुए कहा कि यह पता लगाया जाना चाहिए कि लिपस्टिक-मेकअप लगाए हुए वे महिलाएं और सूट-बूट पहने वे पुरुष कौन थे, तो पश्चिमी सभ्यता के अनुसार सरकार विरोधी प्रदर्शन कर रहे थे। हास्यास्पद बात यह है कि इस दौरान स्वयं नकवी सूट-बूट पहने हुए थे।
5 comments:
मुंबई में आतंकी हमले के बाद कारपोरेट मीडिया अपने आकाओं (कंपनियों और उसके चट्टुओं) के लिए मीडिया से अधिक आंदोलनकारी की भूमिका में आ गया है. इलेक्ट्रानिक मीडिया एक दो फाईवस्टार होटलों में हुए हमलों को जिस तरह से जंग पर उतारू है वह निश्चित रूप से परेशान करनेवाला है. इलेक्ट्रानिक मीडिया जो भूमिका निभा रहा है वह मीडिया से ज्यादा वफादार कुत्ते की भूमिका है जो अपने मालिक के लिए भौंकता है. अगर यह वफादार कुत्ता देश के आम नागरिकों के दुख-दर्द के प्रति इतना वफादार होता तो बात इतनी अखरती नहीं.
इलेक्ट्रानिक मीडिया के कुछ अंग्रेजी चैनल इस समय भिन्नाए हुए हैं और वे एक आतंकी वारदात को रिपोर्ट करने, उसकी जानकारी देने से आगे के ाम को अंजाम दे रहे हैं. ऐसे चैनलों की भाषा और खबरनवीसी देखेंगे तो समझ आ जाएगा िक वे खबर देने से आगे का काम कर रहे हैं. क्यों? क्योंकि इस बार हमला उन अमीरी और अय्याशी के उन सुरक्षित गढ़ों पर हुआ है जो इस देश के चंद अमीरों की झूठी शान का दिखाने का अड्डा है. निश्चित रूप से इस घटना की निंदा होनी चाहिए और आगे से ऐसी घटनाएं न हों ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए. लेकिन सुरक्षित केवल ताज और ओबेराय ही क्यों हों? या फिर किसी शहर का एकाध हिस्सा बाकी हिस्सों से अधिक सुरक्षित क्यों हो? सुरक्षा तो पूरे देश की होती है. एकसमान होती है.
फिर ये पूंजीपति और उनके पिट्ठू इलेक्ट्रानिक चैनल सिर्फ एक खित्ते पर हुए हमलों को देश पर हमला बता रहे हैं? यह देश पर हमला होता अगर वह खित्ता देश के बाकी लोगों के दुख दर्द के साथ जुड़ा होता. इलेक्ट्रानिक चैनलों की हिम्मत देखिए. वे राजनीतिक लोगों के चरित्र पर सवाल उठा रहे हैं. एक ऐसा माहौल बनाने में लगे हैं कि इस देश का राजनीति वर्ग बिल्कुल नाकारा है. राजनीतिज्ञों को सड़कों पर खड़ा करके गोली मार देना चाहिए. लेकिन इलेक्ट्रानिक चैनलों के ये पट्टाधारी रिपोर्टर आज अगर इस तरह से अभियान चला रहे हैं तो इसके लिए भी राजनीतिक वर्ग ही दोषी है. राजनीतिक लोग आम आदमी के वोटों से चुनकर वहां पहुंचते हैं लेकिन वहां पहुंचने के बाद वे हमेशा खास आदमियों के लिए काम करते हैं जिनका न राजनीतिक प्रणाली में कोई विश्वास है और न ही इस देश के लोकतंत्र में. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसी गिटपिटाया जमात के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक वर्ग हमेशा काम करता है.
इलेक्ट्रानिक मीडिया द्वारा राजनीतिक बलि लेने का सिलसिला जारी है. शिवराज पाटिल, आरआर पाटिल के बाद अब निशाने पर भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी हैं. नकवी ने कहा कि लिपस्टिक लगाकर और पाउडर पोतकर जो लोग आतंक के खिलाफ नारा लगा रहे हैं उनके वश में कुछ है कि वे इसे रोक पायेंगे. क्या गलत कहा नकवी ने? एक झिंगूर देखकर घर के बाहर भाग जानेवाले लोग असल में हर प्रकार के आतंक के जन्मदाता होते हैं. आज अगर देश में नक्सलवाद की समस्या है तो उसके मूल में कौन लोग हैं? आज अगर देश में आतंकवाद की समस्या है तो उसके मूल में कौन है? कौन सा वह लालची वर्ग है जो अपनी लालच को पूरा करने के लिए समाज में विषमता पैदा कर रहा है? आप सबको भ्रम है कि वह राजनीतिक लोग हैं. साहब, अब समाजवाद का जमाना नहीं है जहां राजनीतिक व्यक्ति ही सर्वोपरि होता था. यह पूंजीवाद का युग है. और इस पूंजीवादी युग में पूंजीपति राजनीतिक लोगों को सिर्फ प्रयोग करता है. आज उस पर आतंकी हमला हुआ तो उसने अपने पालतू कुत्तों को राजनीतिक लोगों को काटने के लिए ही छोड़ दिया है.
नतीजा आप सबके सामने आ रहा है. मुंबई के होटलों पर हुए आतंकी हमले हमें यह भी बताते हैं कि इस देश में पूंजीपति कितना ताकतवर हो चुका है. असल में सरकार नाम की मशीनरी उसकी बंधुआ मजदूर होकर रह गयी है और मीडिया का बड़ा वर्ग उसका पट्टेदार सेवक.आम आदमी न कल कहीं था और न आज कहीं है, और ऐसे ही रहा तो आनेवाले वक्त में कल कहीं होगा भी नहीं.
sahi hai bilkul janab. narayan narayan
बेचारा नकवी जीवन में पहली बार सच बोला होगा और बबाल खड़ा हो गया।
aap bahut accha likhte hai , is lekh ke liye badhai sweekaren
in fact mere vichar se ab ye desh ek banana country bante ja raha hai ..
bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
आप मेरे विचारों से भले सहमत हों न हों लेकिन मैं आपके विचारों की कद्र करता हूं। बात नजरिए की है। खैर... मेरे ब्लाग पर आपकी मौजूदगी का एहसास करती रहेगी... फिर आइए धन्यवाद
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